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हम औरतें

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हम औरतें ******** हम औरतें कुम्हार की माटी की तरह  मूर्ति बनने से पूर्व  कूटी और पीटी जाती है फिर जिस सांचे की मूर्ति बनानी हो उस सांचे में गढ़ दी जाती है हर रोज..... चूक से भी मूर्ति में  यदि कोई हो जाती है चूक  अस्वीकार और निर्रथक हो जाती है हम तब दोबारा तोड़ दी जाती है नये सांचे में नई मूर्ति के लिए हर रोज..... गोल गोल पकी हुई  रोटी सी हर रोज  गरम गरम तवे पर सींकती है हम कच्चापन दिखाई देने मात्र से आग की लपटों में फिर से सेंकी जाती है हम हर रोज...... पके हुए व्यंजनों में नमक सी घुल जाती है हम हर रोज  फीके बेस्वाद खाने में ज़ायका बढ़ा देती है हम  हर रोज... यदि चूक से बढ़ जाय नमक चढ़ जाती है त्यौरियां फेंकी जाती है थालियां तब थाली सी ठनठनाती है हम हर रोज...... हम औरतें न जाने कब तक कूटी और पीटी जाएंगी  कुम्हार की माटी की तरह आग में सैकेंगी और पकाई जाएंगी रोटियों की तरह परोसी जाएंगी भोजन की तरह फ़ैकि जाएंगी थलियों की तरह हर रोज .... हम कब तोड़ेंगी अपना सब्र उफनती नदिया की तरह जब तटबंधों को तोड़  फैल जाएंगी हम अंतहीन रास्तों पर  बहा ले जाएगी  अपने साथ कलुषित समाज की रूढ़िवादी उहापोह क

मछली

मछली  ******  ज्वार-भाटा चढ़ता है  लहरों पर लहरों  ऊँची ऊँची उछालों से  दूर जा गिरती है |  रेतली बालू मिट्टी पर  मछली | ज्वार-भाटा का थम जाना  लहरों का  लौट जाना    छोड़ जाता है  तलछ्टों पर   छटपटाती  तडफ तडफ कर  जान देती है  मछली | पुष्पा  कभी बचपन में ऊँचे सपनों का दौर और उमींदो का छोर पकड़े हवों में उड़ते ना जाने कहाँ पहुँचने का इरादा होता था ठीक से नहीं पता किन्तु जब सब रेत की तरह हाथ से सपने फिसलते थे तो उस तड़फ को महसूस किया है |यह कविता उसी बचपन  की यादों में ले गयी, हालाकि कविता आज भी सार्थक ही लगती है ।

लेख - जहर उगते शहर, मौत के साए में इंसान

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जहर उगते शहर, मौत के साए में इंसान भाग -1 भारत में पयार्वरण की स्थिति दिन प्रति दिन भयानक होती जा रही है | भारत के शहरों के हालत विषैले होते जा रहे है अगर महानगरों की बात करें तो ये दिन दूना रात चौगुना जहर उगल रहे है | शहरों में टी.वी., केंसर, पीलिया, फेफड़ो का कमजोर होना आदि मरीजों की संख्या बढ़ रही है | अस्पताल भरे पड़े है आज स्थिति यह है कि कई मरीजों को अस्पताल में इलाज के लिए जगह ही नहीं है | आये दिन कई मरीजों को अस्पताल के प्रांगण में ही तिल-तिल मरते देखा जा सकता है | आखिर यहं का पर्यावरण इतना दूषित कैसे हो गया | यह केवल जनसंख्या में बढ़ोतरी का कारण तो नहीं हो सकता, फिर ऐसा क्या है ? जिसकी वजह से शहरों ने जहर उगना शुरू कर दिया | बड़े बड़े शोध रिपोर्ट आ रही है, लोग संवाद कर रहे है, और नतीजा शहरों में पानी प्रदूषित हो गया है, वायु प्रदूषित है, शहर कचरें के ढेर पर साँस ले रहा है, यहाँ तक कहा जाता है भारत में शौच खुले में किया जाता है इसलिए भी पर्यावरण दूषित है | वाकई यही कारण है क्या ? या फिर कुछ और कारण है जिन पर हम बात नहीं करना चाहते है ? खुले में शौच इंसानी सभ्यता

कविता .... उड़ान

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               उड़ान ------ जितना बाँध सको बाँध लो मुझे , मेरी ख्वाइशों की उड़ान को , कैसे कैद कर पाओगे  || उड़ान ------ जितना बाँध सको बाँध लो मुझे , मेरी ख्वाइशों की उड़ान को , कैसे कैद कर पाओगे  || पुष्पा